लखनऊ:
यूपी में जल्द बंद हो सकते हैं 27 हजार बेसिक शिक्षा के स्कूल.
डीजी ने बैठक में दिए बेसिक शिक्षा के स्कूलों के मर्जर की तैयारी के निर्देश।
50 से कम विद्यार्थियों वाले स्कूल किए गए चिन्हित।
आसपास के स्कूलों में बच्चों का प्रवेश कराया जाएगा।
डीजी स्कूल शिक्षा कंचन वर्मा ने बीएसए को दिए निर्देश।
बेसिक शिक्षा पर मायावती के तर्क
यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री आदरणीया मायावती जी द्वारा, 50 से कम नामांकन वाले विद्यालयों को समीपस्थ विद्यालय में समायोजित करने के फैसले का विरोध किया गया है। उनके x पर ट्वीट इस प्रकार हैं-
1. यूपी सरकार द्वारा 50 से कम छात्रों वाले बदहाल 27,764 परिषदीय प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में जरूरी सुधार करके उन्हें बेहतर बनाने के उपाय करने के बजाय उनको बंद करके उनका दूसरे स्कूलों में विलय करने का फैसला उचित नहीं। ऐसे में गरीब बच्चे आखिर कहाँ और कैसे पढ़ेंगे? 1/3
2. यूपी व देश के अधिकतर राज्यों में खासकर प्राइमरी व सेकण्डरी शिक्षा का बहुत ही बुरा हाल है जिस कारण गरीब परिवार के करोड़ों बच्चे अच्छी शिक्षा तो दूर सही शिक्षा से भी लगातार वंचित हैं। ओडिसा सरकार द्वारा कम छात्रों वाले स्कूलों को बंद करने का भी फैसला अनुचित। 2/3
3. सरकारों की इसी प्रकार की गरीब व जनविरोधी नीतियों का परिणाम है कि लोग प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने को मजबूर हो रहे हैं, जैसाकि सर्वे से स्पष्ट है, किन्तु सरकार द्वारा शिक्षा पर समुचित धन व ध्यान देकर इनमें जरूरी सुधार करने के बजाय इनको बंद करना ठीक नहीं। 3/3
सरकार का तर्क
ध्यान देने योग्य बात है कि आरटीई एक्ट के अनुसार बेसिक शिक्षा में प्राथमिक विद्यालय में 30 बच्चों पर एक अध्यापक जबकि जूनियर हाई स्कूल में 35 बच्चों पर एक अध्यापक की नियुक्ति होनी है। सरकार का कहना है कि उत्तर प्रदेश में पर्याप्त शिक्षक हैं शिक्षक बच्चों के अनुपात पर अध्यापकों की संख्या सरप्लस है।
बेसिक शिक्षा के शिक्षकों का तर्क
जबकि अध्यापकों का तर्क है कि विद्यालय में अध्यापकों की संख्या कम होने से गार्जियन अपने बच्चों को बेसिक शिक्षा स्कूलों में भेजना नहीं चाहते हैं। वह कहते हैं कि जब पूरे विद्यालय में एक- दो अध्यापक हैं तो सभी पांचो कक्षा को कैसे पढ़ाएंगे इसलिए गार्जियन बच्चों को भेजना नहीं चाहते।
और यह बात सही भी है बेसिक शिक्षा में डीबीटी, यू-डाइस आर्थिक जनगणना अन्य तरह के जो कार्य सरकार द्वारा अध्यापकों से कराए जाते हैं उससे शैक्षणिक गुणवत्ता प्रभावित होती है और गार्जियन अपने बच्चों को प्राथमिक विद्यालय में नहीं भेजना चाहते!
लेकिन सरकार का मत इससे उलट है। अब यह उसी तरह है कि पहले मुर्गी आई कि अंडा। सरकार कहती है बच्चों की संख्या बढाइये और गार्जियन कहते हैं कि शैक्षणिक गुणवत्ता बढाइये। दोनों का एक-दूसरे के विरोध साथ विरोधाभास जारी है।
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