छठ पूजा: आस्था और सूर्योपासना का महापर्व
छठ पूजा सूर्य देवता की उपासना का पर्व है, जिसमें भगवान सूर्य को जीवन का स्रोत मानते हुए उनकी आराधना की जाती है। मान्यता है कि सूर्य की किरणों में ही जीवन की शक्ति होती है और वे हमें स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख प्रदान करते हैं। छठ पूजा के दौरान व्रती (उपासना करने वाले) सूर्य देव को अर्घ्य देकर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं।
छठ पर्व मुख्य रूप से बिहार और झारखंड का प्रमुख त्योहार है, लेकिन इसकी धूम दिल्ली, उत्तर प्रदेश और अन्य कई राज्यों में भी देखने को मिलती है। यहां तक कि मुंबई में भी छठ पूजा मनाई जाती है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा और राजस्थान के भी कई क्षेत्रों में छठ का पर्व मनाया जाता है।
भारत में कई पर्व और त्यौहार मनाए जाते हैं, जिनमें से छठ पूजा का विशेष स्थान है। यह पर्व विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में सूर्य देव और छठी मइया की पूजा की जाती है। यह पर्व सूर्य उपासना के माध्यम से प्रकृति और मानवता के प्रति श्रद्धा, आभार और आराधना को व्यक्त करता है।
छठ पूजा का महत्व और पौराणिक मान्यताएं
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह भी कहा जाता है कि महाभारत काल में द्रौपदी ने अपने परिवार की समृद्धि और लंबी उम्र के लिए छठ का व्रत रखा था। इसके अलावा, कहा जाता है कि सूर्य देव की बहन छठी मइया अपने भक्तों पर कृपा बरसाती हैं और उन्हें संतान सुख का आशीर्वाद देती हैं।
छठ पूजा का स्वरूप और आयोजन
छठ पूजा चार दिनों का पर्व होता है, जिसमें नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य जैसे अनुष्ठान शामिल हैं।
1.पहला दिन: नहाय-खाय– इस दिन व्रती नदी, तालाब, या किसी पवित्र जलाशय में स्नान कर शुद्धिकरण करते हैं। इसके बाद पवित्र भोजन ग्रहण करते हैं, जिसमें लौकी और चने की दाल का विशेष महत्व होता है।
2. दूसरा दिन: खरना – इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं और शाम को पूजा के बाद गन्ने के रस से बनी खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस प्रसाद को आस-पास के लोगों में भी बांटा जाता है। खरना के दिन व्रती का मन और शरीर पूरी तरह से पवित्रता के भाव में डूब जाता है।
3. तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य – इस दिन व्रती नदी या जलाशय किनारे इकट्ठे होते हैं और डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। अर्घ्य देने के लिए बांस की टोकरी में फल, ठेकुआ, नारियल, और गन्ना सहित अन्य पूजन सामग्री रखी जाती है। यह दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है, जिसमें सूर्यास्त के समय की रोशनी और भक्तों की श्रद्धा का अद्भुत मिलन देखने को मिलता है।
4. चौथा दिन: उषा अर्घ्य – छठ पूजा के अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। प्रातःकाल व्रती जल में खड़े होकर सूर्य देव से प्रार्थना करते हैं और उन्हें अर्घ्य अर्पित करते हैं। इसके बाद प्रसाद ग्रहण करके व्रत का समापन किया जाता है।
पर्यावरण संरक्षण का संदेश
छठ पूजा का आयोजन नदियों, तालाबों और अन्य जलाशयों के किनारे किया जाता है। इस पूजा में प्लास्टिक या कृत्रिम चीजों का प्रयोग नहीं होता, बल्कि प्राकृतिक वस्त्र, बांस की टोकरियां, और मिट्टी के दिए आदि का उपयोग किया जाता है। इससे प्रकृति को स्वच्छ और शुद्ध रखने का संदेश मिलता है।
वहीं, पिछले कुछ सालों में पर्यावरण प्रेमियों और प्रशासन ने इस पर्व के दौरान जलाशयों की सफाई और जल संरक्षण की अपील की है, ताकि नदियों और जलाशयों की पवित्रता बनी रहे। लोग भी अब इस दिशा में जागरूक हो रहे हैं और पर्व के दौरान किसी प्रकार की गंदगी फैलाने से बचते हैं।
सामाजिक एकता और भाईचारे का पर्व
छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामुदायिक एकता का प्रतीक भी है। इस पर्व के दौरान लोग जाति, धर्म और संप्रदाय से ऊपर उठकर एकजुट होते हैं और एक साथ मिलकर पूजा करते हैं। सभी लोग एक-दूसरे की मदद करते हैं, जिससे समाज में भाईचारे की भावना मजबूत होती है।
भारत में छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा हमारे देश की सांस्कृतिक धरोहर है, जिसमें प्रकृति, सूर्य, जल और मानवता का विशेष स्थान है। यह पर्व न केवल हमें धार्मिक आस्था में बांधता है, बल्कि प्रकृति और पर्यावरण के प्रति कृतज्ञता भी व्यक्त करता है। आज के बदलते समय में भी इस पर्व का महत्व और लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। श्रद्धालु न केवल इसे एक पर्व के रूप में, बल्कि अपने जीवन को शुद्ध और सात्विक बनाने के अवसर के रूप में भी मनाते हैं।
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