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“राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: इतिहास, विचारधारा और समाज में योगदान”

Byjanjankikhabar.com

Nov 8, 2024
आरएसएस

 

“राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: इतिहास, विचारधारा और समाज में योगदान”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संक्षिप्त विवरण

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) एक भारतीय हिंदू राष्ट्रवादी संगठन है जिसकी स्थापना 1925 में केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर, महाराष्ट्र में की थी। आरएसएस का मुख्य उद्देश्य भारत को एक संगठित और शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभारना है, जहाँ समाज में सभी वर्गों के लोग मिलकर एकजुट हों और एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण करें।

आरएसएस का मुख्य आदर्श “हिंदू राष्ट्र” की स्थापना है, जिसका मतलब है एक ऐसा समाज जहाँ सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों पर आधारित एकता और समृद्धि हो। संघ का मानना है कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति हजारों वर्षों से एक विशेष पहचान बनाए हुए हैं और इस पहचान की रक्षा करना और इसे मजबूती देना अत्यंत आवश्यक है।

डॉ केशव राम बलिराम हेडगेवार जी

 

स्थापना और इतिहास

केशव बलिराम हेडगेवार, जो एक डॉक्टर और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, ने महसूस किया कि अंग्रेजों के शासन के दौरान भारत में सामाजिक और सांस्कृतिक गिरावट आई है। हेडगेवार ने देखा कि भारतीय समाज में जाति-पाति, धर्म और वर्ग के आधार पर भेदभाव बढ़ रहा है और राष्ट्र एकता की भावना कमजोर हो रही है। इन समस्याओं से निपटने के लिए उन्होंने एक ऐसे संगठन की परिकल्पना की जो समाज को एकजुट कर सके और उसे एक शक्ति प्रदान कर सके।

1925 में विजयादशमी के दिन आरएसएस की स्थापना हुई। धीरे-धीरे यह संगठन अपने उद्देश्य और विचारधारा के माध्यम से पूरे देश में लोकप्रिय होता गया। इसके अनुयायी संघ के स्वयंसेवक कहलाते हैं और ये स्वयंसेवक विभिन्न प्रकार के सेवा और सामाजिक कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।

आरएसएस की संरचना

आरएसएस एक अनुशासित संगठन है जिसकी संरचना विशिष्ट होती है। इसकी आधारभूत इकाई को ‘शाखा’ कहा जाता है। शाखाएं पूरे भारत में विभिन्न स्थानों पर नियमित रूप से लगती हैं, जहाँ स्वयंसेवक शारीरिक व्यायाम, खेल, योग और परेड जैसे गतिविधियों में भाग लेते हैं। शाखाओं में स्वयंसेवकों को समाज और राष्ट्र के प्रति उनके कर्तव्यों के बारे में शिक्षा दी जाती है।

संघ का नेतृत्व एक ‘सरसंघचालक’ के पास होता है, जो संगठन का सर्वोच्च पदाधिकारी होता है। सरसंघचालक संघ के विचारों और नीतियों का मार्गदर्शन करते हैं। उनके अलावा संघ में और भी कई महत्वपूर्ण पद होते हैं, जैसे सरकार्यवाह (महासचिव) जो संगठन की कार्यकारी गतिविधियों को संभालते हैं।

द्वितीय सरसंघचालक गुरु गोलवलकर

विचारधारा और उद्देश्य

आरएसएस का मुख्य उद्देश्य समाज में राष्ट्रवाद और हिंदू एकता को बढ़ावा देना है। इसका मानना है कि समाज में जातिवाद, धर्म और वर्ग के भेदभाव को मिटाकर सबको एक भारतीय के रूप में देखना चाहिए। आरएसएस का मानना है कि भारत एक “हिंदू राष्ट्र” है, जहाँ हिंदू जीवन दर्शन, संस्कृति और परंपराओं का विकास और संरक्षण होना चाहिए। इसका हिंदू राष्ट्र का विचार केवल धार्मिक नहीं है बल्कि एक सांस्कृतिक और नैतिक विचारधारा है, जो समाज के सभी वर्गों को जोड़ने का प्रयास करता है।

आरएसएस शिक्षा, सामाजिक कार्यों, और अन्य सेवा कार्यों में भी संलग्न है। शिक्षा के क्षेत्र में आरएसएस द्वारा संचालित ‘विद्या भारती’ जैसे संगठन ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में शिक्षा का प्रचार करते हैं। इसके अलावा, ‘सेवा भारती’ जैसे संगठन गरीब और पिछड़े वर्गों के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा, और अन्य आवश्यक सेवाओं का प्रबंध करते हैं। आरएसएस का मानना है कि समाज की हर समस्या को संगठित होकर ही सुलझाया जा सकता है।

बाढ़ में संघ द्वारा राहत कार्य

प्रमुख संगठनों और उनकी भूमिकाएँ

आरएसएस ने अपने उद्देश्यों को व्यापक बनाने के लिए कई सहयोगी संगठनों की स्थापना की है। इन संगठनों का कार्यक्षेत्र समाज के विभिन्न आयामों को कवर करता है। इन संगठनों को “संघ परिवार” के रूप में जाना जाता है। प्रमुख संगठनों में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी), भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस), विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी), और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) शामिल हैं।

विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी: हिंदू धर्म और संस्कृति के प्रचार-प्रसार और संरक्षण के उद्देश्य से कार्य करता है।

भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस): यह श्रमिक संघ का काम करता है और मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करता है।

विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी): यह एक छात्र संगठन है, जो शिक्षा और छात्रों के हितों की रक्षा में कार्यरत है।

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी): आरएसएस का राजनीतिक सहयोगी संगठन है और भारतीय राजनीति में इसकी प्रमुख भूमिका है।

आरएसएस और विवाद

आरएसएस का इतिहास विवादों से भी जुड़ा रहा है। आलोचक आरोप लगाते हैं कि आरएसएस का हिंदू राष्ट्र का विचार एक विशेष धर्म को बढ़ावा देता है और अन्य धर्मों के प्रति असहिष्णुता का भाव रखता है। गांधीजी की हत्या के बाद 1948 में आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, क्योंकि नाथूराम गोडसे, जो महात्मा गांधी का हत्यारा था, कभी संघ का सदस्य था। हालांकि, इस प्रतिबंध को बाद में हटा लिया गया और संघ ने खुद को इस घटना से अलग करते हुए अपनी विचारधारा को स्पष्ट किया।

इसके अलावा, आरएसएस पर यह भी आरोप लगता है कि वह सांप्रदायिक हिंसा और धार्मिक ध्रुवीकरण में भूमिका निभाता है। हालांकि, आरएसएस अपने कार्यों को समाजसेवा, राष्ट्रप्रेम, और सांस्कृतिक उत्थान से जोड़ता है और कहता है कि वह केवल समाज को मजबूत बनाने के लिए कार्य करता है।

सामाजिक योगदान और कार्य

संघ कार्य

आरएसएस ने समाज में कई सकारात्मक योगदान भी किए हैं। विभिन्न आपदाओं के दौरान जैसे कि बाढ़, भूकंप, और महामारी के समय संघ के स्वयंसेवकों ने समाज की सेवा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान संघ के स्वयंसेवकों ने राशन, दवाइयां, और अन्य आवश्यक सामग्री बांटी। इसके अलावा, आरएसएस का शिक्षा के क्षेत्र में भी योगदान सराहनीय है।

आरएसएस का मानना है कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं के माध्यम से एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण संभव है। संघ की शाखाएं और इसके द्वारा चलाए जाने वाले अन्य संगठनों के माध्यम से युवाओं में अनुशासन, आत्मनिर्भरता, और समाज सेवा की भावना विकसित की जाती है।

निष्कर्ष:

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक ऐसा संगठन है जो भारत को एक सशक्त, संगठित और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राष्ट्र बनाने के उद्देश्य से कार्यरत है। इसके कार्य और विचारधारा को लेकर कई मतभेद हो सकते हैं, लेकिन इसमें संदेह नहीं है कि यह संगठन भारतीय समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। सामाजिक सेवा से लेकर शिक्षा और राष्ट्रभक्ति तक, आरएसएस का उद्देश्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहाँ सभी भारतीय एक साथ मिलकर एकजुटता के साथ कार्य कर सकें।

आरएसएस के समर्थक इसे एक अनुशासित, समाजसेवी और राष्ट्रभक्त संगठन मानते हैं, जबकि आलोचक इसे सांप्रदायिक और धर्म विशेष की विचारधारा को बढ़ावा देने वाला मानते हैं। इन सभी विचारों के बावजूद, आरएसएस का भारत के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में एक प्रमुख स्थान है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की दो दिवसीय बैठक का हुआ शुभारंभ


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